असली मोती
बहुत समय पहले की बात है , किसी गाँव में एक बुढ़िया समुद्र किनारे बनी एक झोंपड़ी में रहती थी| समुद्र से बह कर जो भी शंख, मोती किनारे पर आ जाते थे , उन्हें वह बड़ी मेहनत से इकठ्ठा करके रख लेती और बड़ी खूबसूरती से रंग बिरंगे धागों में पिरो कर माला तैयार कर लेती थी
अगले दिन उस माला को बाज़ार में जाकर बेच देती , इसी से उसका गुजर बसर हो जाता था | एक दिन की बात है , बुढ़िया रेत से चमकदार मोती और सीपियाँ बीन रही थी तभी उसकी नज़र एक सफ़ेद चमचमाते मोती पर पड़ी | बुढ़िया की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयी |
उसने अपने जीवन में इतना बड़ा और चमकदार मोती नहीं देखा था | शाम को बुढ़िया ने सीपियों की एक बहुत सुन्दर माला बनाई और मोती को बीच में लगा दिया | मोती के लगते ही माला की शोभा दोगुनी हो गयी| बुढ़िया खुश होते हुए बोली - " इस माला को तो मैं सौ रूपये से कम में नहीं बेचूंगी |
तभी उसे एक मीठी सी आवाज़ आई - " अम्मा, इसे एक सोने की अशर्फी से कम में नहीं बेचना | बुढ़िया आवाज़ सुनकर घबरा उठी की भला यह आवाज़ कहाँ से आ रही है | वह हैरानी से इधर - उधर देखने लगी | थोड़ी देर में फिर वही आवाज़ आई - " अम्मा , तुम बिलकुल मत डरो | मैं मोती बोल रहा हूँ और तुम्हारी सारी ग़रीबी दूर करना चाहता हूँ | कल तुम राज महल के सामने जाकर खड़ी हो जाना, राजा ही इसका सही मूल्य दे पाएगा |"
दूसरे दिन बुढ़िया राज महल के सामने जा कर खड़ी हो गयी | जब राजा की सवारी निकली तो वह उसके पास दौड़ते हुए पहुँच गयी| माला की सुन्दरता देख कर राजा दंग रह गया |"इसकी कीमत क्या है ?" राजा ने पूछा |
"एक सोने की अशर्फी " बुढ़िया ने सकुचाते हुए कहा|
राजा ने मंत्री से कह कर बुढ़िया को एक अशर्फी दिलवा दी और माला गले में डाल ली | उस रात राजा जब सोने लगा तभी उसे मोती से आवाज़ आई -" पिताजी, मैं आपका पुत्र जयसिंह हूँ|" यह सुनते ही राजा आश्चर्य और ख़ुशी से बोला -" पर तुम तो समुद्र में तैरते हुए डूब गए थे |"
" हाँ- पिताजी , पर मुझे एक जलपरी ने बचा लिया और मोती बना दिया | आप कल मुझे बगीचे की मिट्टी में दबा देना | कुछ देर बाद वहां एक पेड़ उग जायेगा जो सफ़ेद मोतियाँ से लदा होगा |"
"उससे क्या होगा ? " राजा ने अचरज से पूछा |
" आप अपने राज्य में मुनादी करवा देना की जो जितने मोती चाहे बिना मूल्य दिए ले जा सकता है |" मोती ने कहा| "पेड़ लगाने से क्या तुम अपने असली रूप में आ जाओगे ?" राजा ने उत्सुकता से पूछा |
मोती बोला - " जब आपको कोई मोती के बदले पैसे देगा तब ही मैं अपने असली स्वरुप में आ पाउँगा वरना मैं हमेशा के लिए ऐसा ही रह जाऊंगा |" राजा उदास होकर सोचने लगा , "जब सभी को मुफ्त में मोती मिलेंगे तो भला कोई उसका मूल्य क्यूँ देगा ?" राजा ने पूरी रात इसी सोच में बिता दी |
सुबह उठ कर उनसे मोती को ले जाकर अपने उद्यान में उगा दिया , थोड़ी ही देर बाद वहां जगमगाते मोतियों से भरा एक पेड़ खड़ा था| राजा ने मोती के कहे अनुसार राज्य में मुनादी करवा दी | लोग मुफ्त में भर-भर कर मोती ले जाने लगे | पेड़ पर नए मोती फिर से आ जाते और पेड़ फिर मोतियों से भर जाता|
ऐसे ही कई दिन बीत गए राजा रोज सुबह पेड़ के पास जाता और शाम को उदास मन से वापस लौट आता |
धीरे-धीरे उसकी आशा ख़त्म होने लगी, किसी ने राजा को मोतियों का मूल्य देने की बात तक नहीं कही|
एक दिन राजा हर दिन की तरह पेड़ के पास बैठा था तभी एक सुन्दर युवती आती दिखाई दी |राजा के पूछने पर उसने कहा -"महाराज मैं यहाँ कुछ मोती लेने आई हूँ |" और उसने यह कहते हुए एक अशर्फी राजा की ओर बढ़ाते हुए बड़ी ही विनम्रता से कहा - " कृपया मोती का मूल्य स्वीकार कीजिये|"
राजा का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा | तभी उसे अपने पुत्र की बात याद आई और वह बोला -" तुम्हे शायद पता नहीं है की यह मोती कोई भी बिना कीमत दिए ले जा सकता है |" इस पर युवती ने कहा -" राजन! मेरी माता ने सिखाया है की किसी भी वस्तु को उसकी कीमत देकर ही लेना चाहिए |"
राजा की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए| उसने जैसे ही हाथ में अशर्फी पकड़ी तो सामने पेड़ की जगह अपने पुत्र को खड़ा पाया | राजा ख़ुशी से झूम उठा और अपने पुत्र को गले लगा लिया | युवती जब वहां से जाने लगी तो राजा ने युवती से कहा -"तुमने अशर्फी तो मुझे दे दी परन्तु मोती तो लिया ही नहीं |
राजा ने मुस्कुराते हुए कहा -" मेरा पुत्र ही मेरा मोती है जो मुझे बरसों बाद मिला है | तुम जैसी बुद्धिमान और ईमानदार पुत्रवधू मुझे कहाँ मिलेगी ?" युवती ने भी अपनी रजामंदी दे दी तत्पश्यात राजा ने दोनों का विवाह बड़े धूमधाम से किया जिसे लोगों ने कई वर्षों तक याद रखा |
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